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तकदीरो के फासले तोह वैसे भी बढ़ाते गए...
आज इस शहर में बसेरा है कल तोह में अनजानी थी
अब पता चला हवा का रुख बदलते देर कितनी लगती है
आज तोह बदल भी मायूस है
जसी वोह भी रोने वाला है
आने दे अब अंधी या तूफान
अब हर शक्श तुमसा नजर आ रहा है
जिस गलियारे पहले घुमा करते थे
आज उस सर जमीन का हर शक्ष बेगाना है मुझसे
तमन्ना तोह तेरी बहो में टूट जाने की थी
अब सोचती हु अब तःनाही कटनी होगी यह जिंदगानी
अगर फिर कभी अगली रहगुजर में मिलगये
तोह अपने चेहरे से नकाब न उतरना
हम बहोत नाजुक है फिरसे बिखरके टूट जायेंगे
तुम्हे रोकने की ख्वाहिश तो बहोत थी
पर तुम्हारी उतनी एहमियत कहा थी
बस यही सवल है यह अँधेरा कैसे मिटाऊ ?
अब कोई मिलजाए हमगुजर यही काफी हैं तेरा जिक्र मिटने के वास्ते
में इस गम की बाड़ में डूबी हुईं
तुम खुश न हो एक पल ख़ुशी का तेरा भी बीत जायेगा
हमको जो हसते है यह दात
फिर जुबान पे हमारा ही नाम पुकारेंगे
अब सुकून के आसू ज्हाल्कारह है मेरे मुदतेही
तुभी तन्हाई के आसू बहएगा .