Tuesday, October 26, 2010

तन्हाई के आसू




तकदीरो के फासले तोह वैसे भी बढ़ाते गए...
आज
इस शहर में बसेरा है कल तोह में अनजानी थी
अब
पता चला हवा का रुख बदलते देर कितनी लगती है
आज
तोह बदल भी मायूस है
जसी
वोह भी रोने वाला है
आने
दे अब अंधी या तूफान
अब
हर शक्श तुमसा नजर रहा है
जिस
गलियारे पहले घुमा करते थे
आज
उस सर जमीन का हर शक्ष बेगाना है मुझसे
तमन्ना
तोह तेरी बहो में टूट जाने की थी
अब
सोचती हु अब तःनाही कटनी होगी यह जिंदगानी
अगर
फिर कभी अगली रहगुजर में मिलगये
तोह
अपने चेहरे से नकाब उतरना
हम
बहोत नाजुक है फिरसे बिखरके टूट जायेंगे
तुम्हे
रोकने की ख्वाहिश तो बहोत थी
पर तुम्हारी उतनी एहमियत कहा थी
बस यही सवल है यह अँधेरा कैसे मिटाऊ ?
अब
कोई मिलजाए हमगुजर यही काफी हैं तेरा जिक्र मिटने के वास्ते
में
इस गम की बाड़ में डूबी हुईं
तुम
खुश हो एक पल ख़ुशी का तेरा भी बीत जायेगा
हमको
जो हसते है यह दात
फिर
जुबान पे हमारा ही नाम पुकारेंगे
अब
सुकून के आसू ज्हाल्कारह है मेरे मुदतेही
तुभी तन्हाई के आसू बहएगा .


Friday, October 22, 2010

एकाकी Part 1










एकाकी एक solitary Confinement स्त्रीला स्त्री म्हणून आयुष्य जखाद्नायास काय करनीभूत असत,म्हणजे तिला फ्रीडोम अणि व्य्याक्तिस्वतंत्र या abstract ideas ची जराही कल्पना नसते...? बाहेरून सारे स्तब्ध ....आतून मात्र भावना दादप्लेल्या.... अगदी रुक्मिणी सारख्या ती ही अशीच स्वतहाच्या इच्छा कोठून येत असेल तिला, kothun yet asel tila समर्थ स्वताहाच स्वताशिच लधान्यच्ये....!

स्वतहाच्या एच्चेला तिलांजलि देवून, मनातला संघर्ष दडपून जगण्यात नाकिच्च ताकद लागत असेल .....टी कोप्र्यवार्च्या चुकती खोलीत रात्र रंगवानार्य रसिक बाबूना कसाकलेल ???
ती स्वताहाच स्वतहाच्या आयुष्याचे दुखा विणत होती तेहि हसत ..हसत..
हो अन्धल्या आईची अणि चिंता कोण ...करेल सकाळी चिंता कोण करेल ?

सकाळी एका ठेकेदाराकड़ दगड माती -विटा उचलायछे काम करते अणि रात्रि ,रजाए ,गोधडी ...शिवायाचे काम करते .... आयुष्याचा चरितार्थ .. .असाच चालुअहे
गेली २३ वर्षे .....


पण एकदा मात्र हा क्रम चुकला अणि नियतीच्या कर्निने कही निरालेच घडले.....अणि क्षणभर तीही थिजली ..कारन हे सगळे अनापेक्षित होते तिच्या साथी..अन त्याच्या साठीही....